✨ प्रेम कहानी – तेरे नाम से ज़िंदगी
कस्बे का मौसम हमेशा ही सादा और सरल होता है। न वहाँ शहर की चकाचौंध थी, न ही गाँव की शांति। दोनों के बीच एक दुनिया, जहाँ लोग एक-दूसरे को जानते थे, रिश्तों की मिठास अब भी बची हुई थी। इसी कस्बे में रहती थी अनन्या, एक बीस साल की लड़की, जिसके चेहरे पर मासूमियत और आँखों में सपनों का समंदर था।
अनन्या किताबों की शौकीन थी। अक्सर कॉलेज के बाद वह कस्बे की छोटी-सी लाइब्रेरी में चली जाती, जहाँ पुरानी किताबों की खुशबू उसे सुकून देती। उसी लाइब्रेरी के बाहर एक दिन उसने पहली बार आदित्य को देखा।
आदित्य शहर से कस्बे में कुछ दिनों के लिए आया था। उसका परिवार मूलतः यहीं का था, लेकिन बिज़नेस के कारण सालों पहले शहर चला गया था। आदित्य पढ़ाई में होशियार और स्वभाव से शांत था। लाइब्रेरी के बाहर खड़ा होकर जब वह अंदर जाने से पहले पुराने दरवाज़े को देख रहा था, तभी अनन्या बाहर निकली। उसकी बाँहों में किताबों का ढेर था और चेहरे पर हल्की-सी थकान।
जैसे ही दरवाज़ा खुला, किताबें अनन्या के हाथ से छिटककर ज़मीन पर बिखर गईं। आदित्य तुरंत झुककर किताबें उठाने लगा।
“सॉरी, मैं ध्यान नहीं दे पाई…” – अनन्या ने झेंपते हुए कहा।
“नहीं, इसमें आपकी गलती नहीं है। शायद दरवाज़ा थोड़ा अटक रहा था।” – आदित्य ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
उस मुस्कान में एक अजीब-सी सादगी थी, जिसने अनन्या को चौंका दिया। कुछ देर दोनों ने किताबें समेटीं और फिर बिना ज़्यादा बातचीत किए अपने-अपने रास्ते चले गए।
लेकिन कहते हैं न, कुछ मुलाकातें यूँ ही नहीं होतीं। किस्मत को शायद यही मंज़ूर था कि दोनों फिर से टकराएँ।
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अगली मुलाकात
दो दिन बाद कॉलेज में “साहित्यिक प्रतियोगिता” थी। अनन्या को कविता पढ़नी थी। जब उसका नाम पुकारा गया, तो पूरा हाल तालियों से गूंज उठा। उसकी आवाज़ में ऐसी मिठास थी कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए।
और सबसे पीछे बैठे आदित्य की नज़रें बार-बार उसी पर टिक रही थीं।
वह सोच रहा था – “ये वही लड़की है… वही, जो लाइब्रेरी में मिली थी।”
कार्यक्रम के बाद आदित्य ने हिम्मत जुटाई और अनन्या से कहा –
“आपकी कविता सच में दिल को छू गई। लगता है, जैसे आप अपने शब्दों में पूरी दुनिया समेट लेती हैं।”
अनन्या को थोड़ी हैरानी हुई कि कोई यूँ खुले दिल से तारीफ़ कर रहा है।
“धन्यवाद… लेकिन आप यहाँ कैसे?”
“मैं अभी कुछ दिनों के लिए यहीं हूँ। सोचा, कॉलेज का कार्यक्रम देख लूँ। और अच्छा हुआ कि देखा, वरना आपकी आवाज़ सुनने से शायद वंचित रह जाता।”
यह सुनकर अनन्या मुस्कुरा दी। और इस मुस्कान में अनकहे रिश्ते की शुरुआत छिपी हुई थी।
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धीरे-धीरे नज़दीकियाँ
दिन बीतते गए। आदित्य का लाइब्रेरी आना-जाना बढ़ गया और हर बार किसी न किसी बहाने उसकी मुलाकात अनन्या से हो जाती। कभी किताबों पर चर्चा, कभी कविताओं पर बहस, तो कभी बस चुपचाप बैठकर पन्ने पलटना।
अनन्या को आदित्य का शांत स्वभाव भाने लगा। उसमें कोई दिखावा नहीं था। वहीं आदित्य को अनन्या की सादगी और सपनों से भरी आँखें खींचती थीं।
एक दिन जब दोनों साथ में बरामदे में बैठे थे, तो आदित्य ने पूछा –
“अनन्या, तुम्हारा सपना क्या है?”
अनन्या ने बिना सोचे कहा –
“मेरा सपना है कि मैं ऐसी लेखिका बनूँ, जिसकी कहानियाँ लोगों के दिल को छू जाएँ। मैं चाहती हूँ कि मेरे शब्द किसी की ज़िंदगी बदल दें।”
आदित्य ने गंभीर होकर कहा –
“और मैं चाहता हूँ कि तुम अपने इस सपने को कभी मरने मत दो। क्योंकि तुम्हारी आँखों की चमक बताती है कि तुम बड़ी चीज़ों के लिए बनी हो।”
अनन्या चुप रही, लेकिन उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसे पहली बार महसूस हुआ कि कोई उसे इतनी गहराई से समझ रहा है।
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भाग 1 का समापन:
यहीं से दोनों की कहानी शुरू होती है। एक मासूम दोस्ती धीरे-धीरे मोहब्बत का रूप लेने लगती है, लेकिन किस्मत ने उनके लिए और भी इम्तहान लिखे हैं।
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