✨ प्रेम कहानी – तेरे नाम से ज़िंदगी
भाग 2 : दोस्ती से मोहब्बत तक
अनन्या और आदित्य की मुलाकातें अब सामान्य सी बात हो गई थीं। कॉलेज, लाइब्रेरी और कभी-कभी कस्बे की गलियों में, दोनों कहीं न कहीं आमने-सामने आ ही जाते। और हर मुलाकात के बाद उनके बीच का रिश्ता और भी मजबूत होता गया।
लोगों की नज़रें अब उन दोनों पर टिकने लगी थीं। कस्बे के छोटे दायरे में जब कोई लड़की और लड़का बार-बार साथ दिखने लगें तो बातें होना लाज़मी है। लेकिन दोनों को इन बातों की परवाह नहीं थी।
पहली सैर
एक रविवार की सुबह, आदित्य ने अनन्या को कहा –
“क्या तुम मेरे साथ कस्बे की झील तक चलोगी? मैंने सुना है कि वहाँ का सूर्योदय बहुत खूबसूरत होता है।”
अनन्या ने पहले हिचकिचाया, लेकिन फिर बोली –
“ठीक है, लेकिन ज़्यादा देर नहीं कर सकते। घर पर सवाल उठेंगे।”
सुबह की ठंडी हवा, झील का शांत पानी और किनारे पर बैठा सूरज का सुनहरा प्रतिबिंब… दोनों ने घंटों बिना ज़्यादा बातें किए उस नज़ारे को देखा।
अनन्या ने धीरे से कहा –
“कभी-कभी लगता है, ये पल रुक जाएँ। ऐसा सुकून शायद ज़िंदगी में बार-बार नहीं मिलता।”
आदित्य ने उसकी ओर देखते हुए कहा –
“शायद इसलिए कि ये पल तुम्हारे साथ हैं।”
अनन्या ने उसकी आँखों में झाँकने की कोशिश की, लेकिन नज़रें झुका लीं। उसके गालों पर हल्की-सी लाली थी।
दोस्ती की गहराई
अब दोनों की बातचीत सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रही। वे अपने बचपन, परिवार, सपनों और डर के बारे में भी एक-दूसरे से खुलकर बात करने लगे।
अनन्या ने बताया कि उसके पिता कस्बे की दुकान चलाते हैं और माँ गृहिणी हैं। घर में लड़कियों को लेकर सोच थोड़ी संकीर्ण है। वह चाहती है कि अनन्या जल्दी पढ़ाई पूरी करके शादी कर ले।
आदित्य ने अपने शहर की ज़िंदगी के बारे में बताया – ऊँची इमारतें, बड़ी कंपनियाँ, लेकिन रिश्तों में खालीपन। उसने कहा –
“शहर में सब कुछ है, लेकिन वहाँ वो अपनापन नहीं है जो यहाँ के लोगों में है।”
अनन्या ने मुस्कुराते हुए कहा –
“तो फिर शायद तुम्हें यहाँ का हिस्सा बन जाना चाहिए।”
आदित्य कुछ देर चुप रहा। वह समझ गया कि यह बात मज़ाक में कही गई थी, लेकिन कहीं न कहीं उसके दिल ने इसे गंभीरता से लिया।
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